भारत और फ्रांस के बीच हुई राफेल डील देश की रक्षा क्षमता को नई ऊंचाई देने वाला ऐतिहासिक फैसला था। पर इस डील को कागज़ से उड़ान तक पहुंचाने वाले शख्स की भूमिका को अक्सर भुला दिया जाता है—स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर।
यह संपादकीय उस नेता को समर्पित है जिसने सादगी, दूरदर्शिता और निर्णय लेने की अद्वितीय क्षमता के साथ भारत की सुरक्षा नीति में क्रांतिकारी बदलाव किए।
अटकी हुई डील, जोश से भरे फैसले
2016 में जब भारत ने फ्रांस से 36 राफेल विमानों की डील की, तब यह फैसला वर्षों से अटकी तकनीकी व प्रशासनिक प्रक्रियाओं को पार कर सामने आया था। मनोहर पर्रिकर ने रक्षा मंत्री बनने के बाद न केवल इस डील की गंभीरता को समझा, बल्कि इसे ‘गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट’ (G2G) मॉडल में परिवर्तित कर दिया—एक ऐसा साहसिक निर्णय जिसने प्रक्रिया को पारदर्शी और त्वरित बना दिया।
राजनीति से परे, राष्ट्रहित सर्वोपरि
राफेल डील पर विपक्ष ने सवाल उठाए, आरोप लगे, पर मनोहर पर्रिकर ने संयम और तथ्यों के साथ जवाब दिए। न तो उन्होंने राजनीतिक बयानबाजी की, न ही मीडिया में आक्रामक रुख अपनाया। उनका ध्यान सिर्फ एक बात पर था—भारतीय वायुसेना को समय पर सर्वोत्तम क्षमता से लैस करना।

डील से ज्यादा थी उनकी सोच
राफेल सिर्फ एक सौदा नहीं था; यह भारत की सामरिक शक्ति और कूटनीतिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। पर्रिकर का दृष्टिकोण तकनीकी था, लेकिन उनके फैसलों में एक संवेदनशील राजनेता की स्पष्टता और नीतिगत निपुणता थी।
आज के लिए सबक
आज जब हम ‘मेक इन इंडिया’, ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘रक्षा निर्यात’ की बातें कर रहे हैं, तब पर्रिकर जैसे नेतृत्व की आवश्यकता और अधिक महसूस होती है।उनकी कार्यशैली हमें यह सिखाती है कि सरकार चलाना घोषणाओं से नहीं, निर्णयों और ज़िम्मेदारी से होता है।
मनोहर पर्रिकर की विरासत केवल राफेल डील तक सीमित नहीं है, बल्कि वह भारतीय राजनीति को एक ऐसा दृष्टिकोण देकर गए हैं जहां सादगी, संकल्प और सेवा का मेल होता है।
राफेल अगर आज आसमान में उड़ रहा है, तो उसकी नींव धरती पर एक सच्चे सेवक ने रखी थी—नाम था मनोहर पर्रिकर।