राजनांदगांव की ज़मीन से निकली उम्मीद की रोशनी – जब अफसर वर्दी नहीं, ज़िम्मेदारी ओढ़ते हैं !

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राजनांदगांव (नांदगांव टाइम्स) जब शासन केवल आदेशों का पुलिंदा नहीं, बल्कि सेवा का संकल्प बन जाए, तो ऐसे उदाहरण जन्म लेते हैं जैसे कि आईएएस सुरुचि सिंह। जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी के रूप में उन्होंने जो किया, वह न केवल उनके पद की गरिमा को ऊँचाई देता है, बल्कि लाखों लोगों के दिलों में यह विश्वास भी जगाता है कि प्रशासनिक कुर्सियाँ केवल रुतबे का साधन नहीं, जिम्मेदारी का मंच भी हो सकती हैं।

दरवाज़े नहीं, दिल खोलती हैं सुरुचि सिंह

जहाँ अधिकतर अधिकारी वातानुकूलित दफ्तरों और सरकारी बैठकों तक सीमित रहते हैं, वहीं सुरुचि सिंह उन गलियों में पसीना बहा रही हैं, जहाँ सरकार की योजनाओं का अंतिम पायदान खड़ा होता है।चाहे वह प्रधानमंत्री आवास योजना की प्रगति हो या जल जीवन मिशन की ज़मीनी सच्चाई – वो खुद जाकर देखती हैं, लोगों से बात करती हैं, समस्याओं को महसूस करती हैं। उनके लिए हर घर की कहानी एक आंकड़ा नहीं, एक इंसानी हालात है।

लोकसेवक का यही अर्थ होता है

जब शासन के गलियारों में ‘सुशासन’ की बात होती है, तो वह केवल नीति-निर्माण तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। असली सुशासन वही है, जो जनता के बीच जाए, उनके दर्द को समझे, और कागज़ों से निकलकर ज़मीनी बदलाव लाए। सुरुचि सिंह का कार्य व्यवहार यही दर्शाता है – कि प्रशासनिक सेवा केवल नियमों की व्याख्या नहीं, बल्कि संवेदनशीलता की गवाही भी है।

एक तस्वीर… और एक चेतावनी

उनकी कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आईं, जिनमें वे गाँव की मिट्टी में, सामान्य लोगों के बीच बैठकर उनकी समस्याएँ सुनती नज़र आ रही थीं। इन तस्वीरों ने कई जड़ हो चुके अफसरों के लिए एक आईना दिखाया है।जहाँ राज्य के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भ्रष्टाचार के मामलों में सलाखों के पीछे हैं, वहीं सुरुचि सिंह की ईमानदारी और सेवा-भाव यह साबित करती है कि “हर अफसर बेईमान नहीं होता, और हर कुर्सी पर केवल अहंकार नहीं बैठता।”

प्रदेश के हर अधिकारी के लिए एक ‘खामोश चुनौती’

यह खबर केवल एक अफसर की नहीं, एक सोच की है। एक दिशा की है। यह उस ‘संवेदनशील प्रशासन’ की छवि गढ़ती है, जिसकी आज हर राज्य को आवश्यकता है। यह एक आह्वान है कि सरकारी सेवा केवल नौकरी नहीं, एक निष्ठा है – और जो इसे समझ लेते हैं, वही वास्तव में लोकसेवक कहलाते हैं।

संवेदनशीलता, निष्ठा और नेतृत्व – यही है सुरुचि सिंह की पहचान

उनकी कार्यशैली एक मौन प्रेरणा बन चुकी है – जो बताती है कि बदलाव संभव है, बस एक अफसर को अपने पद से पहले अपना दिल ज़मीन से जोड़ना होता है।