श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा प्रेम और पारिवारिक सौहार्द्र का पर्व गणगौर

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राजनांदगांव। राजस्थान के सबसे बड़े पर्व गणगौर की पूजा अब सारे देश में श्रद्धा भक्ति के साथ की जा रही है। गण मतलब शंकर और गौर मतलब पार्वती के स्वरूप की पूजा होलिका दहन के दूसरे रोज से कन्याओं, नव विवाहितों एवं महिलाओं के द्वारा 16 दिनों तक विभिन्न रीति रिवाजों के तहत मनाया जा रहा है। इस पर्व का अंतिम दिन 31 मार्च सोमवार को चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा।
इस संबंध में संस्कृति शर्मा ने बताया कि गणगौर पर्व प्रेम और पारिवारिक सौहार्द्र के साथ श्रद्धा भक्ति व आस्था के साथ मनाया जाता है इस पर्व में भवगान शंकर व पार्वती के स्वरूप की गणगौर के रूप में पूजा अर्चना 16 दिनों तक की जाती है।

मां पार्वती ने की थी भोलेनाथ की पूजा

विभिन्न कथाकारों के अनुसार गणगौर के महत्व को इस रूप में समझाया गया है कि मां पार्वती ने भोलेनाथ को पाने के लिए गहन तप किया था। जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ प्रकट हुए और माता पार्वती से वर मांगने कहा तो उन्होंने भगवान भोलेनाथ को अपने वर के रूप से मांगा। इस कारण गणगौर को गण मतलब शंकर और गौर मतलब पार्वती के रूप में पूजा जाता है।

छत्तीसगढ़ के पर्व गौरी गौरा से है समानता

जिस प्रकार छत्तीसगढ़ में दीपावली पर्व पर गौरी गौरा के तहत भगवान शिव और पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है। ठीक उसी प्रकार होली के दूसरे रोज से गणगौर का प्रारंभ होता है। इसमें भी शिव और पार्वती की ही पूजा का महत्व है। दोनों ही पर्वों में विसर्जन के समय गौरी गौरा व गणगौर को महिलाएं सिर पर रखकर नृत्य करते हुए शोभायात्रा में निकलती है। तत्पश्चात विसर्जन किया जाता है। इस तरह यह पर्व छत्तीसगढ़ के गौरी गौरा से भी समानता रखता है।

16 दिन व 16 श्रृंगार से होती है पूजा

होली के दूसरे दिन से प्रारंभ होने वाले गणगौर पर्व की पूजा होलिका में चढ़ाए जाने वाले गाय के गोबर के कंडे से बने बरकुला को होली जलने के पश्चात एकत्रित कर 16 बरकुला चढ़ाकर पूजा प्रारंभ की जाती है। 16 दिनों तक होने वाली इस पूजा में 16 गीत, 16 सुहाग का श्रृंगार व हल्दी, काजल, कुमकुम व मेहंदी से 16 दिनों तक बिंदी लगाकर पूजा की जाती है।

आस्था का महान पर्व

हिन्दू रिती रिवाजों में त्यौहारों का विशेष महत्व होता है। इसी के तहत राजस्थान सहित गणगौर को मामने वाले देश के विभिन्न हिस्सों में लोग पति की लंबी उम्र की कामना व परिवार के सुख, समृद्धि व शांति के लिए यह पर्व आस्था व श्रद्धा भक्तिभाव के साथ मनाते हैं। होली के पश्चात पड़ने वाली शीतला अष्टमी से गणगौर को विराजमान कर शोभायात्रा के रूप में बिंदोरा निकाला जाता है। सबेरे दूबी व जल से पूजा कर सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। इस बार गणगौर पर्व 31 मार्च सोमवार को चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर विशेष पूजा अर्चना के साथ शहर के विभिन्न स्थानों, मंदिरों, समाजों व घरों में विराजमान गणगौर की शोभायात्रा निकालकर शहर भ्रमण कराकर मां शीतला मंदिर माता देवाला के बुढ़ा सागर में विसर्जित करेंगी।