राजनांदगांव(नांदगाँव टाइम्स) जिले में हाल ही में संपन्न हुए ग्राम पंचायत, जनपद और जिला पंचायत चुनावों के नतीजे चौंकाने वाले रहे हैं। इस चुनाव में बड़ी संख्या में ऐसे प्रत्याशी विजयी हुए हैं, जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी, मुरुम और रेती के अवैध उत्खनन से संबंध रहा है। इन नतीजों ने अब प्रशासन की भूमिका और भविष्य में होने वाली संभावित अवैध गतिविधियों को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

अवैध उत्खनन: जिले की एक पुरानी समस्या
राजनांदगांव जिले में अवैध उत्खनन लंबे समय से एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। जिले की कई नदियों और जंगलों से अवैध रूप से मिट्टी, मुरुम और रेती का खनन किया जाता है, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, बल्कि सरकारी राजस्व की भी भारी क्षति होती है। इस धंधे में कई प्रभावशाली लोग वर्षों से लिप्त रहे हैं, जिनमें से कुछ अब पंचायत चुनाव जीतकर सत्ता में आ गए हैं।ग्रामीणों की मानें तो अवैध उत्खनन के कारण जलस्त्रोतों पर खतरा मंडरा रहा है। नदियों के किनारों से अंधाधुंध उत्खनन के चलते कई छोटे जलाशय सूखने की कगार पर हैं। इसके अलावा, इस गतिविधि से जुड़ी परिवहन गाड़ियां सड़कों को नुकसान पहुंचा रही हैं, जिससे ग्रामीणों को भारी असुविधा हो रही है।
चुनाव परिणाम और राजनीतिक समीकरण
इस बार के पंचायत चुनाव में कई ऐसे प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे, जिनका बैकग्राउंड अवैध उत्खनन से जुड़ा रहा है। दिलचस्प बात यह रही कि इनमें से अधिकांश प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इन प्रत्याशियों को चुनाव में काफी धनबल और बाहुबल का लाभ मिला।
इनमें से कुछ प्रत्याशियों ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वे क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करेंगे, लेकिन ग्रामीणों के मन में सवाल यह भी है कि क्या वे अपने निजी स्वार्थों के चलते अवैध उत्खनन को बढ़ावा देंगे?
प्रशासन की चुनौती: कार्रवाई करेगा या देगा संरक्षण ?
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या प्रशासन इन नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों की अवैध गतिविधियों पर लगाम लगाएगा या फिर राजनीतिक दबाव में आकर उन्हें संरक्षण देगा?पिछले अनुभवों को देखें तो कई बार प्रशासन ने अवैध उत्खनन पर कार्रवाई करने की कोशिश की, लेकिन राजनीतिक प्रभावशाली लोगों के दबाव के चलते ये कार्रवाई आधी-अधूरी रह गई। कई मामलों में तो प्रशासनिक अधिकारी तबादलों और अन्य दबावों के चलते कदम पीछे हटाने को मजबूर हो गए।ग्रामीणों का मानना है कि यदि प्रशासन निष्पक्ष रूप से काम करता है, तो अवैध उत्खनन को रोका जा सकता है, लेकिन यदि स्थानीय नेताओं का प्रभाव प्रशासन पर हावी हुआ, तो यह समस्या और विकराल हो सकती है।
ग्रामीणों की मांग: पारदर्शी जांच और कड़ी कार्रवाई
क्षेत्र के पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रशासन से मांग की है कि पंचायत चुनाव जीतकर आए जनप्रतिनिधियों की पृष्ठभूमि की जांच होनी चाहिए। अगर कोई भी व्यक्ति अवैध उत्खनन में लिप्त पाया जाता है, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।ग्रामीणों का कहना है कि यदि प्रशासन ने इस मामले में लापरवाही बरती, तो आने वाले समय में जिले की नदियां, तालाब और अन्य प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाएंगे।
क्या करेगी सरकार ?
अब देखना यह होगा कि प्रशासन और राज्य सरकार इस पूरे मामले को कितनी गंभीरता से लेती है। क्या वे अवैध उत्खनन को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाएंगे, या फिर यह गठजोड़ यूं ही चलता रहेगा? यह सवाल अब जिले की जनता के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।