रायपुर (नांदगांव टाइम्स)। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा हाल ही में विदेशी शराब पर 9.5% अतिरिक्त उत्पाद शुल्क हटाने का फैसला किया गया है। इस कदम के तहत विभिन्न ब्रांड की शराब की कीमतों में 40 रुपये से 3,000 रुपये तक की कमी आई है। सरकार का दावा है कि इससे अवैध तस्करी पर अंकुश लगेगा और अधिकृत शराब दुकानों से बिक्री बढ़ेगी, जिससे राजस्व में बढ़ोतरी होगी। लेकिन इस नीति का दूसरा पहलू भी सामने आ रहा है, जिसमें राज्य में शराब की उपलब्धता और खपत में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है, जिससे कई सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
राजस्व में नुकसान और तस्करी पर नियंत्रण का असफल प्रयास
सरकार का अनुमान था कि इस नीति से शराब की अवैध तस्करी में कमी आएगी, लेकिन अब तक इसके उलट परिणाम देखने को मिल रहे हैं। प्रदेश में शराब बिक्री से होने वाले राजस्व में गिरावट देखी जा रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, शराब बिक्री से होने वाली आय में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पाई है, जिससे राज्य की वित्तीय स्थिति पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार द्वारा टैक्स छूट दिए जाने के बावजूद, शराब की तस्करी और अवैध बिक्री पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि शराब कोचिए (अवैध रूप से शराब बेचने वाले) अब अधिक सक्रिय हो गए हैं और शराब की ब्लैक मार्केटिंग तेजी से बढ़ रही है।

गाँव-गाँव में मिल रही शराब, बढ़ रही सामाजिक समस्याएँ
राज्य के विभिन्न हिस्सों से शिकायतें मिल रही हैं कि अब शराब पहले से अधिक सुलभ हो गई है। शहरों से लेकर गाँवों तक, जगह-जगह पर अवैध रूप से शराब बेची जा रही है। पहले जहाँ ठेकों से शराब खरीदनी पड़ती थी, वहीं अब गली-मोहल्लों और गाँवों में घर-घर तक शराब पहुँचाई जा रही है।
इसका सीधा असर सामाजिक ताने-बाने पर पड़ रहा है। घरेलू हिंसा, सड़क दुर्घटनाएँ और आपराधिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार की यह नीति न केवल राजस्व को प्रभावित कर रही है, बल्कि नशे की लत को बढ़ावा देकर परिवारों और युवाओं के भविष्य को भी खतरे में डाल रही है।
कानून-व्यवस्था पर संकट, शराब माफियाओं का दबदबा बढ़ा
प्रदेश में शराब माफियाओं की सक्रियता तेजी से बढ़ी है। हाल ही में पुलिस द्वारा की गई कई छापेमारी में बड़ी मात्रा में अवैध शराब बरामद की गई है। कई जगहों पर स्थानीय प्रशासन और शराब माफियाओं के बीच मिलीभगत के भी आरोप सामने आ रहे हैं, जिससे कानून-व्यवस्था पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।प्रदेश के कई जिलों में अवैध शराब के खिलाफ स्थानीय नागरिकों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर सरकार से शराब नीति पर पुनर्विचार करने की माँग कर रहे हैं।
सरकार के लिए बढ़ती चुनौतियाँ, नीति की समीक्षा की माँग
विष्णु देव सरकार के लिए यह मुद्दा अब एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। विपक्षी दलों ने भी इस फैसले की कड़ी आलोचना की है और सरकार पर राजस्व घाटे के साथ-साथ सामाजिक समस्याओं को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है।वर्तमान हालात को देखते हुए विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों का सुझाव है कि सरकार को शराब नीति की समीक्षा करनी चाहिए।
अवैध शराब बिक्री पर सख्ती से रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। इसके अलावा, शराब से होने वाले राजस्व पर निर्भरता को कम करने के लिए अन्य वैकल्पिक वित्तीय स्रोतों की खोज करनी होगी, ताकि प्रदेश की अर्थव्यवस्था संतुलित बनी रहे।
छत्तीसगढ़ सरकार का यह निर्णय फिलहाल विवादों के घेरे में है। टैक्स छूट से राजस्व में सुधार होने की बजाय गिरावट की आशंका बनी हुई है, वहीं प्रदेश में शराब की खपत और अवैध बिक्री से कई सामाजिक और कानूनी चुनौतियाँ सामने आ रही हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है और क्या शराब नीति में कोई बदलाव लाकर बिगड़ते हालात पर नियंत्रण पा सकती है।