शरीयत के दायरे में मनाये मोहर्रम : हाजी रईस अहमद शकील

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राजनांदगांव। इस्लामिक शोहदाए कर्बला कमेटी के बैनर तले जिक्र-ए-शोहदाए कर्बला शहर जामा मस्जिद के बाड़े में आयोजित किया जा रहा है।
शहर एतराफ जामा मस्जिद के मीडिया प्रभारी सैय्यद अफजल अली ने बताया कि शोहदाए कर्बला कमेटी के सदर असद रजा की अध्यक्षता और तमाम उलेमा इकराम की सरपरस्ती में यह आयोजित हो रहा है, जिसका संचालन जेरे निजामत हाफिज हाजी सलीम रजा तहसीनी सहाब कर रहे हैं।
उक्त प्रोग्राम में धर्मगुरू मुफ्ती शेर मोहम्मद बरकाती साहब उत्तरप्रदेश नौ दिनों की तकरीर (प्रवचन) कर कर रहे हैं। इन 9 दिनों में वह अलग-अलग दिन नूरी मस्जिद कन्हारपुरी, शाहे मदीना मस्जिद शांतिनगर, नूरी मस्जिद गौरी नगर, मोती मस्जिद तुलसीपुर तकरीर पूरी कर पांच दिन की तकरीर का प्रोग्राम जामा मस्जिद में कर रहे हैं।
जामा मस्जिद के सदर हाजी रईस अहमद शकील ने बताया कि मोहर्रम का महीना बहुत ही फजीलत व बरकत वाला महीना है। यह पहला इस्लामिक महीना है जिसमें नवासए रसूल हजरत इमामे हुसैन करबला में अपनी शहादत दी थी और इस्लाम के परचम को बुलंद किया था। इस्लामिक महीना मोहर्रम की दस तारीख को इस्लाम धर्म की रक्षा करते हुए वह करबला के मैदान में बातिलों (दुश्मनों) से लड़ते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी और दुनिया को यह पैगाम दे दिया कि कभी भी बातिल के आगे सर न झुकाना।
हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि हजरत इमामे हुसैन और इमाम हसन जन्नती जवानों के सरदार हैं। रईस अहमद शकील ने समाज के लोगों से अपील करते हुए कहा कि शरीयत के दायरे में रहकर मोहर्रम मनायें।
इस्लाम हमेशा नाजाइज व हराम कामों से रोकता है, मोहर्रम में आवाम फिजुलखर्ची से बचें, गरीब व बेसहारा लोगों की मदद करें। शेर बन कर नाचना ठोल तासे, गम में रोना गाना यह तमाम काम शरीयत के वाजाइज व मना हैं। सिर्फ, हमारे है हुसैन का नारा लगाने की जगह फलसफा-ऐ-हुसैन समझने की जरूरत है, और जरूरत है मोआशरे को ये बताने की कि, मोहर्रम सिर्फ एक महीना या एक रिवाज नहीं, एक दर्सगाह है, हमारी तालीमगाह है।
मां की गोद से कब्र की आगोश तक हमने यही दर्स सीखा है कि बातिल के मुकाबिल टिके रहना है हुसैन के इनकार की तरह, और आजमाइश कितनी ही सख्त क्यों ना हो हमें सब्र और तहम्मुल से काम लेना है।
आज, ऐसा ही सख्त वक्त और कड़े इम्तेहान का वक्त है कि जब हमको एक नजीर पेश करनी है कि हम एक जिम्मेदार और मुनज़्ज़िम कौम हैं, कर्बला का मकसद था इंसानियत और आदमियत की बकाए और आज आलम-ए-आदमियत सख्त आजमाइश के दौर में है तो हम सब पर बड़ी जिम्मेदारी है।
सैय्यद अफजल अली ने कहा प्रोग्राम के अंत में हर रोज मुल्क में अमन व अमान के लिये दुआ मांगी जाती है। मेहमाने खुसूसी शेर मो. बरकाती साहब आवाम को इस्लाम का सच्चा पैगाम दे रहे है इस्लाम हमेशा अमन व आमान शांति का पैगाम देता है।