श्री तिरूपति बालाजी मंदिर की रजत जयंती पर दो दिवसीय भव्य आयोजन

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राजनांदगांव। श्री तिरूपति बालाजी मंदिर स्टेशनपारा में 25 वर्ष पूर्ण होने पर रजत जयंती आयोजन को लेकर मंदिर समिति ने तैयारियां शुरू कर दी है। रजत जयंती आयोजन को लेकर मंदिर समिति दो दिवसीय भव्य आयोजन करने जा रही है। पहले दिन 108 कलशों से अभिषेक व भव्य शोभायात्रा और दूसरे दिन भगवान बालाजी का विवाह समारोह आयोजित करने को लेकर जानकारी दी गई।
श्री तिरूपति बालाजी धर्मार्थ सेवा समिति स्टेशनपारा के पदाधिकारियों ने गुरुवार को प्रेसवार्ता लेते बताया कि इस वर्ष मंदिर स्थापना को 25 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। उक्त रजत जयंती के अवसर पर 19 अप्रैल को सुबह भगवान का 108 कलशों के साथ भव्य अभिषेक कराया जा रहा है। जिसमें भक्तजन बड़ी संख्या में शामिल होंगे। उक्त संध्या को 5 बजे भव्य शोभायात्रा, बारात का आयोजन किया गया है, जो गायत्री मंदिर चौक से प्रारंभ होकर कामठी लाईन, भारत माता चौक, आजाद चौक, महाकाल चौक, महावीर चौक में समापन होगा। साथ ही बालाजी मंदिर परिसर में महाआरती व 56 भोग का आयोजन रखा गया है। वहीं दूसरे दिन 20 अप्रैल को सुबह 9.30 बजे से 12 बजे तक भगवान बालाजी का विवाह समारोह आयोजित किया गया है। वहीं दोपहर 12.30 बजे से प्रसादी रखा गया है। जिसमें लगभग 4 से 5 हजार भक्तों को प्रसादी ग्रहण की व्यवस्था की गई है।
उन्होंने बताया कि 2023 में श्री तिरूपति बालाजी मंदिर को भव्य रूप प्रदान करने एवं संचालन के लिए रजिस्टर्ड समिति श्री तिरूपति बालाजी धर्मार्थ सेवा समिति का भी गठन किया गया है।
मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि स्व. व्हीपी कृष्णा मुदलियार एवं उनके भाईयों स्व. उदय मुदलियार एवं श्रीधर मुदलियार ने सन् 2000 में भक्तजनों को भगवान श्री वेंक्टेश स्वामी के दर्शन के लिए स्टेशनपारा मुदलियार बाड़ा में श्री तिरूपति बालाजी मंदिर की स्थापना की। मंदिर की स्थापना 25 वर्ष पूर्व सन् 2000 में 13 से 20 अप्रैल में 7 दिवसीय भगवान विष्णुजी का महायज्ञ के साथ में श्री व्यंकटेश बालाजी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर स्थापना की गई थी। मंदिर में सन् 2000 से 2012 तक प्रतिवर्ष उक्त अवसर पर सात दिवसीय विभिन्न आयोजन जैसे महायज्ञ, भागवत कथा व अन्य आयोजन कराए जाते रहे हैं। प्राण-प्रतिष्ठा से भगवान के किशोरावस्था तक लगातार 12 वर्ष 13 अप्रैल से 20 अप्रैल में 7 दिवसीय आयोजन किया गया। जिसमें द्वारपाल (जय-विजय) की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। भगवान कुबेर की प्राण-प्रतिष्ठा कुबेर महामंत्र के साथ संपन्न हुई। 1008 पार्थिव शिवलिंग के साथ शिव महाभिषेक का भी आयोजन किया गया था।