राजनांदगांव। साधक का लक्ष्य अपनी साधना को आगे बढ़ाते हुये समाधि को प्राप्त करना होता है। उपरोक्त उद्गार श्रमण संस्कृति के उन्नायक लोकोत्तर महापुरुष आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की समाधि के एक वर्ष उपरांत आयोजित विनयांजलि सभा में निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने धर्म सभा में संबोधित करते हुये व्यक्त किये। मुनि श्री ने कहा कि सम्यक्त्व और समाधि दो ऐसे महत्वपूर्ण बिंदू है, जिनसे भव्य आत्माऐं साधक बन करके अपने निर्वाण के लक्ष्य को प्राप्त करते है, जैन दर्शन का सार यही है कि जीवन में सम्यक्त्व की प्राप्ती हो और उपसंहार में उस भव्य आत्माका समाधि मरण हो। उन्होंने गुरुवर आचार्य श्री को याद करते हुये कहा कि वह अपने साधना के संपूर्ण कार्यकाल में यही अनुभव करते रहे और हम सभी को भी यही प्रेरणा देते रहे कि अपने भावों में प्रति समय प्रतिक्रमण एवं समाधि का भाव बना रहे। मुनि श्री ने उदाहरण देते हुये कहा कि मंदिर कितना भी भव्य और विशाल क्यों न बन जाऐ, उसमें बेदी और श्री जी भी विराजमान हो जाऐ, लेकिन यदि शिखर पर कलशारोहण नहीं है, तो वह मंदिर अधूरा माना जाता है, ऐसे ही अपने जीवनकाल में आप कितने भी व्रत उपवास कर लो अंत यदि समाधि सल्लेखना के साथ संपन्न न हो तो वह जीवन अधूरा माना जाता है।
कार्यक्रम के शुभारंभ में आचार्य श्री के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलन चंद्रगिरी समाधि स्थल विद्यायतन के अध्यक्ष विनोद बड़जात्या रायपुर, महामंत्री मनीष जैन, दपाीपसत जैन, सोपान जैन, अमित जैन, नरेश जैन जुग्गु भैया, सप्रेम जैन, चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष किशोर जैन, सुभाष चंद जैन, निर्मल जैन, मंत्री चंद्रकांत जैन, रीतेश जैन डब्बू, अनिल जैन, यतिष जैन, राजकुमार मोदी सहित समस्त पदाधिकारियों ने किया।
इस अवसर पर पांचों प्रतिभास्थलियां जबलपुर, ललितपुर, इंदौर, रामटेक तथा डोंगरगढ़ से आई वृति शिक्षिकाओं ने अपने विचार प्रकट किये। इस अवसर पर डोंगरगढ़ के प्रशासनिक अधिकारियों का भी सम्मानित किया गया। रायपुर, राजनांदगांव, दुर्ग-भिलाई, नागपुर, विदिशा, आदि स्थानों से बड़ी संख्या में संपूर्ण भारत से गुरूदेव के भक्त उपस्थित थे। उक्त जानकारी निशांत जैन (निशु) द्वारा दी गयी है।
साधक का लक्ष्य अपनी साधना को आगे बढ़ाते हुये समाधि को प्राप्त करना होता है : समतासागर
