छुईखदान। लगभग पचास बरस पहले क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन सरकार द्वारा क्षेत्र में उस जमानें में करोड़ों की स्वीकृति प्रदान कर जलाशय मध्यम परियोजना का निर्माण कराया गया, जिसका नाम पिपरिया जलाशय और रानी रश्मि देवी जलाशय के नाम से जाना जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उक्त पिपरिया जलाशय के निर्माण से पहले और बाद के इस क्षेत्र के आम किसान बंधुओं के जीवन शैली में जमीन-आसमान की प्रगति देखने को मिली है, इसी बांध के पानी ने क्षेत्र के किसानों की जीवन शैली को उच्च स्तर तक ले जाने मे अहम भूमिका निभा रहा है। इसी बांध के बदौलत क्षेत्र की जमीनों की कीमत आसमान छू रही है, और कहना ना होगा कि इसी बांध के निर्माण के काल से ही इस नगर का भी गहरा नाता बन गया है, जल संसाधन विभाग में कार्यरत अधिकारी-कर्मचारी श्रमिकों उनके परिवारों का इस नगर के विस्तार व्यापार, शिक्षा आदि के क्षेत्र में अमिट योगदान रहता चला आ रहा है। इस दौरान नगर की जनसंख्या बढ़ी लोगों का आना-जाना बढ़ा, जरूरतें बढ़ी, खासकर शुद्ध पेयजल की आवश्यकता मे चार गुणा ईजाफा हुआ है, परन्तु नगर पंचायत जैसे-तैसे इस चुनौती से निपट रहा है। वर्तमान मे राज्य शासन की ओर से इस पूरे क्षेत्र की जीवन दायिनी कहलानें वाले पिपरिया जलाशय में केवल ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की योजना को अमली जामा पहनाने की दृष्टि से प्लांट फिल्टर प्लाट का निर्माण कर छुईखदान शहर को पार करते हुए पाईप लाईन बिछानें की तैयारी लगभग पूरी की जा चुकी है, परन्तु छुईखदान के राजा की जमीन पर निर्मित पिपरिया जलाशय से छुईखदान शहर के ही आमजन प्यासे लोगों को शुद्ध पेयजल प्राप्त करनें से वंचित रखे जाने से लोगों में भारी आक्रेाश देखा जा रहा है। साथ ही खासकर कृषि के लिए निर्मित जलाशय के पानी का अन्य उपक्रम के उपयोग से जलाशय के अस्तितव और भविष्य पर सवाल खड़े होना शुरू हो गया है। सरकार और शासन के इस नगर के प्रति मौसेरे व्यवहार से नगर और वंचित ग्रामों में आक्रोश का वातावरण है, जो आने वाले समय मे कभी भी सड़क पर संघर्ष करते देखा जा सकेगा।
मामले को नगर की जनता और प्राकृतिक संसाधनों पर उनका भी बराबर का अधिकार मानते व जरूरतों के हिसाब से छुईखदान शहर की आम जनता को शुद्ध पेयजल की आपूर्ति को ध्यान में रखते हुए छुईखदान के देवराज किशोर की ओर से नगर की जनता की आवाज व लड़ाई को न्याय दिलाने हेतु याचिका दायर कर न्याय की मांग की गई थी, जिसमें राज्य शासन की ओर से कोई आपत्ति नही होने की स्थिति में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा क्षेत्रीय कलेक्टर को 45 दिनों मे कार्यवाही कर न्याय करने का आदेश हुआ था।
राज्य शासन के ही योजना जिसे जल जीवन योजना के नाम से जाना जाता है, जिसके तहत बुढानभाठ समूह जल प्रदाय योजना के द्वारा पिपरिया जलाशय जिसे रानी रश्मिदेवी जलाशय या छिंदारीबांध भी कहा जाता है। जल संसाधन विभाग के माध्यम से बांध का जल प्राप्त कर उपरोक्त योजना के तहत क्षेत्र के 31 ग्रामों को प्लांट के माध्यम से जल का शुद्धिकरण कर जल प्रदान किया जाएगा। अब उक्त सेवाओं एवं जलापूर्ति के बदले में लाभान्वित ग्रामों से कर आदि प्राप्त किए जाने के संबंध में कोई मार्गदर्शन प्राप्त नही है, परन्तु एक बात तय है कि उक्त योजना के तहत छुईखदान शहर को कोई जलापूर्ति नहीं किए जाना है। भले ही वहां शुद्ध पेयजल संकट व्याप्त हो, परन्तु 31 ग्रामों को सालभर शुद्ध पेयजल आपूर्ति निर्बाध रूप से जारी रहेगी।
एक बात साफ है कि यदि क्षेत्र के 31 ग्रामों को बुढानभाठ समूह के माध्यम से सालभर जलापूर्ति जारी रहेगी, तो भविष्य मे इन ग्रामों के अलावा भी दर्जनों ग्रामों से शुद्ध पेयजल आपूर्ति की मांग उठना लाजिमी है, जो आगे चलकर सैकडों की तादाद मे ग्राम हो सकते हैं। इन हालातो मे एक सीमित क्षमता वाले मध्यम परियोजना के द्वारा कृषि कार्य के लिए जलापूर्ति करना लगभग असंभव सा हो जाएगा। कभी एैसा भी हो सकता है किसी वर्ष बारिश कम हो जलाशय सूख जाए वो दिन इस पूरे क्षेत्र के लिए भारी पड़ने वाला होगा।
यहां सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर पिपरिया जलाशय मध्यम परियोजना के जल को जल संसाधन विभाग से लेकर क्षेत्र के विभिन्न ग्रामों में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति करने वाला बुंढ़ानभाठ समूह जो एक एनजीओ के जैसा संगठन है, उसे इसका व्यापार का अधिकार शासन के किस उपक्रम ने दिया है। आखिर पिपरिया जलाशय का पानी किसको और कितनी मात्रा मे दिया जाना है, उसका निर्णय जल संसाधन विभाग और उसके तकनीकी अधिकारीगणों के द्वारा जरूरत और स्थिति के आधार पर किया जाता है, किसी समूह के द्वारा नहीं जबकि एैसे मामलों में जिले के कलेक्टर एक जवाबदार अधिकारी माने जाते है, यही कारण है कि माननीय उच्च न्यायालय छग की ओर से जिला कलेक्टर को शीर्घ निर्णय लेकर माननीय न्यायालय को अवगत कराने की बात कही गई है।
इधर क्षेत्र के कृषको की समस्याओं को ध्यान मे रखते हुए निर्मित पिपरिया जलाशय के जल को केवल 31 ग्रामों के लिए उपलब्ध कराए जाने से कृषि क्षेत्र से जुड़े एवं शुद्ध पेयजल के संकट से जूझ रहे ग्रामों के बगावत एवं आक्रोश की स्थिति बनी हुई है। शहर छुईखदान सहित इन वंचित ग्रामों के किसानों का कहना है कि यदि शासन को कोई योजना लागू करना है तो शहर सहित पूरे क्षेत्र के ग्रामों के लिए लागू करना होगा, ताकि सभी को समान रूप से शुद्ध पेयजल की आपूर्ति किया जा सके, परन्तु शासन के इस निर्णय से कृृषि कार्य के लिए पिपरिया जलाशय में जल का भराव की संभावना नहीं के बराबर हो जाएगी और आने वाले समय में पिपरिया जलाशय केवल एक समूह के हाथों के कठपुतली बनकर रह जाएगी। साथ ही कृषि के लिए पानी नहीं रह जाएगा अर्थात इस योजना से बांध का भविष्य पूरी तरह से खत्म होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। लोगों ने शासन एवं जिला कलेक्टर, जिला खैरागढ-छुईखदान-गंडई से अपील एवं अपेक्षा की है कि उक्त मामले की गंभीरता और भविष्य में बांध के अस्तित्व के साथ ही कृषि के भविष्य को ध्यान में रखते हुए इस शहर को भी जलापूर्ति की दिशा में माननीय उच्च न्यायालय के आदेशो निर्देशों पर कार्यवाही कर न्याय स्थापित करेंगे।
इस प्रकार से क्षेत्र वनांचल बुढानभाठ समूह के द्वारा जल संसाधन विभाग से जल प्राप्त कर उसे शुद्ध कर क्षेत्र के ही 31 गामों के भूमिपुत्रों को देने की कवायद से एवं विभिन्न ग्रामों तक इसी शहर से गुजरकर जानें वाले पाईप लाईन से छुईखदान शहर के प्यासे कंठों के लिए पानी नहीं देने का तुगलकी निर्णय से पूरा शहर आहत है और शुद्व पेयजल की आस को निराशा में बदल गया है। याचिकाओं के साथ ही शुद्ध किसानी से संबंधित लोगों के बीच बैठको ंका भी दौर जारी है, यदि माननीय उच्च न्यायालय के निर्देशो सहित नगर एवं क्षेत्र के किसानों की आवाज एवं बांध के भविष्य को ध्यान में रखते हुए जल्द फैसले नहीं लिए गए तो आक्रोशित जनता आंदोलन की राह में होगी, शायद इसकी जवाबदारी भी संबंधित विभाग सहित संपूर्ण शासन प्रशासन की होगी।
नगर से गुजरने वाली फिल्टर प्लांट के पानी से पूरा शहर वंचित, आंदोलन की तैयारी
